Lekhika Ranchi

Add To collaction

भारत के महापुरुषों की जीवनी


मदन लाल ढींगरा


 
★★★ जन्म :
18 सितम्बर, 1883, अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश इंडिया
★★★ स्वर्गवास :
17 अगस्त, 1909, पेंटविले जेल, लन्दन यू॰के॰
★★★ उपलब्धियां :
ढींगरा अभिनव भारत मंडल के सदस्य होने के साथ ही इंडिया हाउस नाम के संगठन से भी जुड़े थे, जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान शूरवीरों में अमर शहीद मदन लाल ढींगरा का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं। 

अमर शहीद मदनलाल ढींगरा महान देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे- वे भारत माँ की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त प्रकार के कष्ट सहन किए परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए।सावरकर का सान्निध्य:लंदन में वह विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए। सावरकर ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।

ढींगरा अभिनव भारत मंडल के सदस्य होने के साथ ही इंडिया हाउस नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।कर्ज़न वाइली की हत्या:1 जुलाई 1909 को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के लंदन में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए। 

ढींगरा इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी सर कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हाल में प्रवेश किया तो ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर चार गोलियां दाग़ दीं। कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी ढींगरा की गोलियों से मारा गया।निधन:कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही; परंतु उन्हें पकड लिया गया। 
23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फांसी दे दी गयी। इस महान क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है।

|

   1
0 Comments